रम्माण 2025: सलूड़-डुंगरा गांव में संस्कृति, श्रद्धा और परंपरा का अनोखा संगम

Mohit Bangari
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उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित सलूड़-डुंगरा गांव एक बार फिर से तैयार है अपने लोक-सांस्कृतिक महोत्सव “रम्माण 2025” को भव्य रूप में मनाने के लिए। इस वर्ष रम्माण महोत्सव को लेकर गांव में विशेष उत्साह है।
इस लेख में हम आपको रम्माण 2025 की पूरी जानकारी देंगे – इसकी तारीख, पूजा प्रक्रिया, परंपरा, गांव भ्रमण, और पूरा कार्यक्रम शेड्यूल।
भूमियाल देवता की स्थापना – 14 अप्रैल 2025
14 अप्रैल को चैत्र संक्रांति के दिन, गांव के मुख्य देवता भूमियाल देवता को विधिवत पूजा-अर्चना के साथ उनके स्थायी मंदिर में विराजमान किया गया। यह मंदिर गांव के ऊपरी हिस्से में स्थित है और पहली बार इस मंदिर में देवता को स्थापित किया गया है।
स्थापना के बाद से ही भूमियाल देवता ने गांव का पारंपरिक भ्रमण (डोल यात्रा) शुरू कर दिया है, जो 23 अप्रैल तक जारी रहेगा। इस दौरान देवता हर घर में जाकर आशीर्वाद देते हैं और पूरे गांव को पवित्र और ऊर्जावान बनाते हैं।
रम्माण 2025 की तारीख – 30 अप्रैल 2025
इस वर्ष रम्माण महोत्सव 30 अप्रैल को मनाया जाएगा, जो कि बुधवार का दिन है। इस दिन गांव के सभी देवी-देवताओं का आह्वान होगा, लोकनाट्य प्रस्तुतियां होंगी, पारंपरिक नृत्य और मुखौटा नाट्य (Ramman Mask Dance) का आयोजन होगा।
रम्माण 2025 का कार्यक्रम शेड्यूल
14 अप्रैल – स्थापना दिवस
भूमियाल देवता की मंदिर में प्रतिष्ठा
विशेष पूजा, ढोल-दमाऊ के साथ देव आगमन
आरती और भोग वितरण
15 अप्रैल से 22, 23 अप्रैल – गांव भ्रमण (डोल यात्रा)
देवता हर दिन गांव के अलग-अलग हिस्सों में जाते हैं
हर घर में देवता का स्वागत और पूजा होती है
गीत, ढोल, राग और पारंपरिक चावल (भोग) चढ़ाए जाते हैं
22 या 23 अप्रैल तक, हर दिन अलग-अलग गलियों, मोहल्लों और घरों में देवता पहुँचेंगे और ग्रामवासियों को आशीर्वाद देंगे।
ग्राम भ्रमण के दौरान हर घर में पूजा, दीप जलाना, पारंपरिक गीत और ढोल-दमाऊ की गूंज सुनाई देगी।
23 अप्रैल के बाद, देवता अपने मंदिर में ही विराजमान रहेंगे, और फिर 30 अप्रैल को रम्माण महोत्सव आयोजित होगा।
30 अप्रैल – रम्माण मुख्य आयोजन
सुबह:
गणेश पूजन और भूमि शुद्धि
रम्माण स्थल की सजावट
पूजा सामग्री की तैयारी
दोपहर:
भूमियाल देवता की रम्माण स्थल पर आगमन
देव आरती और हवन
पारंपरिक गीत और लोक संगीत की शुरुआत
शाम:
मुखौटा नाट्य मंचन – जिसमें रावण, राम, लक्ष्मण, हनुमान, भरत, Mwor, mwareen, Baniya, Baniyan आदि के पात्र उतारते हैं
ढोल-दमाऊ की थाप पर लोकनृत्य
जागर गायन – जिसमें देवताओं की कथाएं सुनाई जाती हैं
स्थानीय प्रसाद और भोजन वितरण
गांव के युवाओं द्वारा “गढ़वाली हास्य-नाटिका” भी प्रस्तुत की जाती है
रात:
देवता की विदाई यात्रा
समापन आरती
उत्सव का औपचारिक समापन
रम्माण की खास बातें
मुखौटे (Masks): यह उत्सव उत्तराखंड में होने वाला एकमात्र आयोजन है, जिसमें पारंपरिक लकड़ी के मुखौटे पहनकर नृत्य और नाटक किया जाता है।
संपूर्ण ग्राम की भागीदारी: हर घर इस आयोजन में शामिल होता है, चाहे वह भोजन की व्यवस्था हो, नृत्य करना हो या लोकगीत गाना।
यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त: रम्माण को 2009 में यूनेस्को ने Intangible Cultural Heritage के रूप में मान्यता दी है।
देव परंपरा: भूमियाल देवता को गांव का संरक्षक माना जाता है। उनके बिना कोई शुभ कार्य पूरा नहीं होता।
मेरे गांव सलूड़-डुंगरा में आपका स्वागत है!
मैं, मोहित बंगारी, इसी गांव का निवासी हूं। मेरे लिए रम्माण महोत्सव केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि जीवन का हिस्सा है।
अगर आप रम्माण 2025 में आकर इस आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अनुभव को जीना चाहते हैं, तो आप मुझसे संपर्क कर सकते हैं।
हमारे गांव में “Ramman Homestay” नाम से होमस्टे की सुविधा भी है,
जहाँ आप रुक सकते हैं, गांव की संस्कृति देख सकते हैं और रम्माण का हिस्सा बन सकते हैं।
संपर्क के लिए:
मेरी वेबसाइट: mohitbangari.com
mobile – +91 8650838514
या फिर सीधे मुझे कॉल/मैसेज करें।
कैसे पहुंचें सलूड़ डुंगरा
सलूड़ डुंगरा गांव, चमोली ज़िले में जोशीमठ ब्लॉक के पास स्थित है।
नज़दीकी रेलवे स्टेशन: ऋषिकेश/हरिद्वार
बस/टैक्सी द्वारा: चमोली → Zharkula → सलूड़ डुंगरा
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नज़दीकी हिल स्टेशन: जोशीमठ, औली
लेख अपडेट किया जाएगा
नोट:
रम्माण 2025 के आयोजन के बाद हम इस लेख में फोटो, वीडियो और अन्य जानकारी जोड़ेंगे।
आप ब्लॉग को Bookmark, Follow कर सकते हैं।
समापन शब्द
रम्माण 2025 सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक जीवित संस्कृति की अभिव्यक्ति है। यह पर्व हमें हमारी जड़ों, परंपराओं और लोककला से जोड़ता है।
तो आइए, इस बार 30 अप्रैल को सलूड़-डुंगरा में रम्माण 2025 का हिस्सा बनिए और इस अद्भुत लोक परंपरा को खुद अनुभव कीजिए।
“जय भूमियाल देवता !”
“जय सलूड़-डुंगरा !”
“जय रम्माण 2025 !”
लेखक – मोहित बंगारी (गांव – सलूड़ डुंगरा)
Also Read – रम्माण महोत्सव: सलूड़-डुंगरा गाँव की अनूठी परंपरा
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