कौन हैं हनोल के महासू देवता?

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हनोल का महासू मंदिर

         हनोल उत्तराखंड के जौनसार-बावर क्षेत्र में स्थित एक छोटे और ऐतिहासिक गांव का नाम है, जो महासू देवता के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। महासू देवता इस क्षेत्र के प्रमुख लोक देवता माने जाते हैं। महासू देवता की मान्यता केवल उत्तराखंड के जौनसार-बावर और हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में ही नहीं है, बल्कि हिमालयी क्षेत्रों के लोग भी इन्हें गहरी श्रद्धा से पूजते हैं।

 

महासू देवता का इतिहास और उत्पत्ति

महासू देवता दरअसल चार भाई हैं – बासिक महासू, पबासिक महासू, बूठिया महासू और चालदा महासू। इनके नाम से “महाशिव” का अभिप्राय निकलता है। बासिक महासू का मुख्य स्थान मैंद्रथ में है, पबासिक महासू उत्तरकाशी के ठडियार और देवती-देववन में पूजे जाते हैं, जबकि चालदा महासू हमेशा विभिन्न स्थानों पर भ्रमण करते रहते हैं। हर बारह साल में वे उत्तरकाशी और देहरादून में प्रवास करते हैं। इन चारों भाइयों के वीर भी हैं – कफला वीर, गुडारु वीर, कैलू वीर और सेकुड़िया वीर, जिनका भी सम्मान और पूजा की जाती है।

 

हनोल का महासू मंदिर

हनोल के महासू देवता का मंदिर नौवीं सदी में निर्मित हुआ माना जाता है। कुछ ऐतिहासिक रिकार्ड्स के अनुसार, इसका निर्माण 11वीं या 12वीं सदी में हुआ। इस मंदिर की स्थापत्य शैली अद्वितीय है, जिसमें लकड़ी और पत्थर का बेजोड़ संगम देखा जा सकता है। इस मंदिर का निर्माण बिना गारे की चिनाई से किया गया है, जिसमें पत्थरों को एक के ऊपर एक रखकर ऊंचा बनाया गया है। मंदिर के गर्भगृह में एक दिव्य ज्योत भी सदैव जलती रहती है और यहा से प्रसाद रूप में पवित्र जल भी मिलता है।

 

मंदिर के गर्भगृह में सिर्फ पुजारी ही प्रवेश कर सकता है। यह गर्भगृह विशेष महत्व का है, क्योंकि यहाँ पर जल की एक धारा बहती है जिसका स्रोत आज तक किसी को पता नहीं है। इसके अलावा, मंदिर परिसर में भीम द्वारा प्रयुक्त किए गए दो विशाल गोलों का भी जिक्र है, जिनका वजन 240 और 360 किलो के आसपास है।

 

उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में महासू देवता का विशेष स्थान है। यह मंदिर न्याय का प्रतीक माना जाता है, जहाँ लोग अपनी परेशानियाँ और समस्याएं लेकर आते हैं। महासू देवता का दर्शन उत्तरकाशी, जौनसार-बावर, रंवाई परगना और हिमाचल के विभिन्न क्षेत्रों में होते हैं। हनोल मंदिर में सुबह-शाम विशेष पूजा और नौबत बजाई जाती है।

 

महासू देवता और राष्ट्रपति भवन से संबंध

महासू देवता का राष्ट्रपति भवन से भी संबंध है। राष्ट्रपति भवन की ओर से हर साल यहां पर नमक भेजा जाता है, जो कि महासू देवता के लिए विशेष माना जाता है। इस परंपरा का पालन वर्षों से किया जा रहा है, जो मंदिर की आध्यात्मिक महत्ता को और भी बढ़ाता है।

 

महासू देवता की पूजा और मान्यताएँ

महासू देवता को न्याय के देवता माना जाता है और लोगों का मानना है कि वे हमेशा सत्य का साथ देते हैं। कहा जाता है कि किसी भी अन्याय के खिलाफ महासू देवता से प्रार्थना की जाए, तो वे उचित न्याय दिलाते हैं। इसीलिए यहाँ के लोग जब भी कोई बड़ी समस्या या विवाद होता है, तो वे महासू देवता की शरण में जाते हैं। मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति उनके प्रति सच्ची श्रद्धा से प्रार्थना करता है तो देवता उसकी समस्याओं का समाधान कर देते हैं।

 

हनोल में हर साल कई धार्मिक अनुष्ठान और त्योहारों का आयोजन होता है, जिसमें महासू देवता की विशेष पूजा होती है। यहाँ पर हर तीन साल में महासू जातरा नामक एक विशेष उत्सव मनाया जाता है। इस उत्सव के दौरान हज़ारों भक्त मंदिर में आकर महासू देवता को प्रसन्न करने के लिए भजन-कीर्तन, नृत्य और विभिन्न अनुष्ठान करते हैं।

 

महासू देवता की पौराणिक कहानियाँ

महासू देवता के साथ कई कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। एक लोकप्रिय कथा के अनुसार, जब महासू देवता ने यहाँ अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया, तो लोग उनके चमत्कार से प्रभावित होकर उनकी पूजा करने लगे। इसी के बाद हनोल में उनका यह मंदिर बना। एक अन्य कथा के अनुसार, महासू देवता ने एक दुष्ट राजा को परास्त किया, जो स्थानीय जनता पर अत्याचार करता था। उन्होंने राजा को हराकर उसकी सत्ता को खत्म किया और जनता को राहत दी।

 

माना जाता है कि महासू देवता का संबंध द्वापर युग से है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब पांडव लाक्षागृह से सुरक्षित निकलकर यहां पहुंचे, तो उन्होंने अपनी मां कुंती के साथ इस स्थान पर कुछ समय बिताया। इसी कारण, इस क्षेत्र को पौराणिक महत्व प्राप्त है। हनोल का नाम यहां के ब्राह्मण हूणा भाट से निकला माना जाता है। पहले यह स्थान “चकरपुर” के नाम से जाना जाता था।

 

महासू देवता और उनके भक्तों का संबंध

हनोल के लोगों की महासू देवता में गहरी आस्था है और वे इन्हें अपना रक्षक मानते हैं। यहाँ के लोग अपनी फसल, पशुधन और परिवार की रक्षा के लिए नियमित रूप से महासू देवता की पूजा करते हैं। इसके अलावा, लोग महत्वपूर्ण अवसरों जैसे शादी, बच्चे का जन्म, आदि पर भी मंदिर में जाकर महासू देवता से आशीर्वाद लेते हैं।

 

महासू देवता के मंदिर में पहुँचने का मार्ग

हनोल गाँव उत्तराखंड के देहरादून और पौड़ी गढ़वाल से लगभग 180 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। देहरादून से हनोल पहुँचने के लिए सड़क मार्ग सबसे आसान है। हनोल पहुँचने के लिए त्यूनी, चकराता, और विकासनगर के रास्ते होते हैं, जो हरियाली और पहाड़ी दृश्यों से भरे हैं। मंदिर के आसपास की प्राकृतिक सुंदरता भी अत्यंत आकर्षक है, जो यात्रियों को शांति और आध्यात्मिकता का अनुभव कराती है।

 

महासू देवता का महत्व और क्षेत्र में उनकी भूमिका

महासू देवता इस क्षेत्र के लोगों के सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन में गहराई से जुड़े हुए हैं। यहाँ के लोग उनकी कहानियों को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। महासू देवता केवल एक धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि सामूहिकता और न्याय का प्रतीक भी हैं। उनकी पूजा में आने वाले लोग समाज में शांति और न्याय बनाए रखने की कामना करते हैं।

 

हनोल के महासू देवता का यह मंदिर हिमालयी संस्कृति, लोक जीवन और धार्मिक मान्यताओं का प्रतीक है। यह स्थान हर उस व्यक्ति के लिए खास है जो भारतीय संस्कृति और पौराणिक परंपराओं से जुड़ना चाहता है। हनोल आकर महासू देवता के इस पवित्र मंदिर के दर्शन करने का अनुभव हर किसी के लिए अविस्मरणीय होता है।

 

निष्कर्ष

हनोल का महासू देवता मंदिर एक अद्वितीय धरोहर है, जहाँ न केवल स्थानीय बल्कि दूर-दराज से लोग न्याय और धार्मिक अनुभूति प्राप्त करने के लिए आते हैं। यह मंदिर लोक देवताओं के प्रति श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है, जो उत्तराखंड के सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है।

 

यदि आप बद्रीनाथ के घंटाकर्ण देवता के बारे मैं पढ़ना चाहते हैं तो दिए गए लिंक पर क्लिक करें

घंटाकर्ण: बद्रीनाथ के द्वारपाल देवता

 

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