Culture & Festivals

अरसा: उत्तराखंड की पारंपरिक मिठाई और इसकी रोचक कहानी

अरसा: उत्तराखंड की पारंपरिक मिठाई और इसकी रोचक कहानी

अरसा एक पारंपरिक मिठाई है, जो उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्रों में विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यह मिठाई चावल, गुड़ और घी से बनाई जाती है और अपने अद्वितीय स्वाद के कारण लोकप्रीय है। इसे विशेष रूप से त्योहारों, विवाह समारोहों और अन्य शुभ अवसरों पर बनाया जाता है। इसकी मिठास और सादगी इसे हर पीढ़ी में लोकप्रिय बनाए रखती है।

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योग का हमारे जीवन पर प्रभाव और उत्तराखंड का योगदान

योग का हमारे जीवन पर प्रभाव और उत्तराखंड का योगदान

योग केवल एक शारीरिक अभ्यास नहीं, बल्कि यह मानसिक, शारीरिक और आत्मिक स्वास्थ्य को संतुलित करने की एक प्राचीन भारतीय विधा है। इसका उल्लेख वेदों और उपनिषदों में भी मिलता है। योग शब्द संस्कृत के “युज” धातु से बना है, जिसका अर्थ “जोड़ना” या “मिलाना” होता है। योग का मुख्य उद्देश्य शरीर, मन और आत्मा के बीच सामंजस्य स्थापित करना है।

आज के व्यस्त जीवन में तनाव, डिप्रेशन, अनिद्रा, मोटापा और हृदय रोग जैसी समस्याएँ आम हो गई हैं। ऐसे में योग एक वरदान की तरह कार्य करता है। योग केवल आसन, प्राणायाम और ध्यान तक सीमित नहीं, बल्कि यह जीवन जीने की एक समग्र पद्धति है, जो व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बनाती है।

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रम्माण महोत्सव: सलूड़-डुंगरा गाँव की अनूठी परंपरा

रम्माण महोत्सव: सलूड़-डुंगरा गाँव की अनूठी परंपरा

उत्तराखंड के चमोली जिले के सलूड़-डुंगरा गांव में मनाया जाने वाला रम्माण महोत्सव हमारी संस्कृति, परंपरा, आस्था और लोककला का एक अनूठा संगम है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसमें हमारी समाज की एकता, नृत्य, संगीत और परंपरागत लोकनाट्य की झलक भी मिलती है।

मुझे गर्व है कि मैं सलूड़-डुंगरा गाँव से हूँ और इस अद्भुत महोत्सव का हिस्सा बनता आया हूँ। यदि आप उत्तराखंड की लोकसंस्कृति और परंपराओं को करीब से देखना चाहते हैं, तो रम्माण महोत्सव में जरूर शामिल हों।

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पैठाणी की होल्यार टीम – रंग, संगीत और परंपरा

गढ़वाल की होली और पैठाणी की होल्यार टीम – रंग, संगीत और परंपरा

उत्तराखंड की होली केवल रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और सामूहिक उल्लास का संगम है। खासकर गढ़वाल में होली का उत्सव अनोखा होता है, जहां ढोल-दमाऊ की थाप पर होल्यारों की टोली गांव-गांव जाकर गीत, नृत्य और ठिठोली के जरिए उत्सव को जीवंत बना देती है।

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2025 में हेमकुंट साहिब के कपाट कब खुलेंगे?

2025 में हेमकुंट साहिब के कपाट कब खुलेंगे?

हेमकुंट साहिब, उत्तराखंड का प्रसिद्ध सिख तीर्थ स्थल, हर साल सीमित अवधि के लिए खोला जाता है। गुरुद्वारा गोविंदघाट प्रशासन ने घोषणा की है कि 2025 में हेमकुंट साहिब के कपाट 25 मई को श्रद्धालुओं के लिए खोले जाएंगे। गुरुद्वारा गोविंदघाट प्रशासन ने यह निर्णय एक बैठक के दौरान लिया और इसकी आधिकारिक घोषणा कर दी गई है। यह खबर सुनते ही श्रद्धालुओं में भारी उत्साह देखा जा रहा है।

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Ma Nanda Devi Raj Jat Yatra 2026 mohitbangari.com

Maa Nanda Devi Raj Jat Yatra 2026 – A Sacred Himalayan Pilgrimage

Nanda Devi Raj Jat Yatra is one of the biggest religious yatras in Uttarakhand, also known as the Himalayan Kumbh. It is held once every 12 years, attracting thousands of devotees, sages, and tourists from across India. This grand pilgrimage is dedicated to Maa Nanda Devi, the goddess of Uttarakhand and the presiding deity of the Kumaon and Garhwal regions.

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Shree Badrinath Temple

What is Kapat Opening Date of Badrinath Dham for 2025? And it’s connection to Narendranagar.

The kapat (doors) of Badrinath Dham, one of the most sacred shrines in India, are set to open on May 2, 2025, at 4:15 AM. This auspicious date was decided during the traditional ceremony held on Basant Panchami at the royal court of Narendra Nagar. Every year, the opening date is calculated based on the Hindu Panchang and is announced well in advance.

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Bhawisya Kedar joshimath

क्या आप जानते हैं भविष्य केदार मंदिर जोशीमठ में है?

उत्तराखंड के जोशीमठ में स्थित भविष्य केदार मंदिर एक अनोखा और धार्मिक महत्व वाला स्थल है। यह मंदिर भगवान शिव और देवी पार्वती को समर्पित है और इसे भविष्य में केदारनाथ का स्थान बताया गया है। अगर आप जोशीमठ घूमने की योजना बना रहे हैं, तो इस मंदिर को जरूर देखें।

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सुरकंडा देवी मंदिर- धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहर

उत्तराखंड की पवित्र भूमि देवभूमि के नाम से जानी जाती है। यहां के हर कोने में धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहरें छुपी हुई हैं। इन्हीं में से एक है सुरकंडा देवी मंदिर। यह मंदिर देवी सती को समर्पित है और 51 शक्तिपीठों में से एक है। टिहरी जिले में स्थित यह मंदिर अपने धार्मिक महत्व और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है। यह स्थान हिमालय की ऊंचाई पर बसा है, जो इसे और भी मनोहारी बनाता है। यहां से बर्फ से ढकी पर्वत श्रृंखलाएं, हरे-भरे जंगल और खुले आसमान का दृश्य दिखाई देता है।

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thokdar houses

गढ़वाल में थोक और थोकदार की अवधारणा

आज के समय में गढ़वाली भाषा में “थोक” का मतलब परिवार या वंश वृक्ष के सदस्यों से है। थोक का प्रमुख या सबसे बड़ा सदस्य “थोकदार” कहलाता है। प्रशासनिक दृष्टि से थोकदार का मतलब प्रधान या गांव के मुखिया का प्रमुख होता है। थोकदार का पद वंशानुगत होता था, लेकिन राज्य या उसके प्रशासक थोकदार को बदल सकते थे। वे नए थोकदार की नियुक्ति कर सकते थे या अतिरिक्त थोकदार भी जोड़ सकते थे।

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