गढ़वाल की होली और पैठाणी की होल्यार टीम – रंग, संगीत और परंपरा

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पैठाणी की होल्यार टीम – रंग, संगीत और परंपरा

         उत्तराखंड की होली केवल रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और सामूहिक उल्लास का संगम है। खासकर गढ़वाल में होली का उत्सव अनोखा होता है, जहां ढोल-दमाऊ की थाप पर होल्यारों की टोली गांव-गांव जाकर गीत, नृत्य और ठिठोली के जरिए उत्सव को जीवंत बना देती है।

इसी सांस्कृतिक धरोहर को संजोए हुए पैठाणी की होल्यार टीम हर साल गढ़वाल की होली को खास बनाने का काम करती है। यह टीम न केवल होली के पारंपरिक लोकगीतों को गाती है, बल्कि इसे नई पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास भी करती है।


 

गढ़वाल की होली – परंपरा और उल्लास

गढ़वाल की होली में संगीत की विशेष भूमिका होती है। यहां बैठी होली और खड़ी होली का प्रचलन है। बैठी होली में शास्त्रीय रागों पर आधारित गीत गाए जाते हैं, जबकि खड़ी होली में ढोल-दमाऊ की थाप पर लोग झूमते-गाते हैं।

“आगै होली, होली आई रे,
रंग-गुलाल की छै छै बौछार,
नचण गाण, मस्ती छायू,
हसण-खेलण को त्यौहार!”

गढ़वाल की पहाड़ियों में जब बुरांस के लाल फूल खिलते हैं, तब समझ लिया जाता है कि होली आ गई है। गांव-गांव में होल्यार टोली निकल पड़ती है और रंग, ठिठोली और संगीत से माहौल सराबोर कर देती है।

“हंसी ठिठोली, मस्त जवानी,
पौड़ी-गढ़वाल की रंग बिरानी,
बुरांस फूली, झूमी बग्याली,
ढोल-दमाऊ बजी मसाणी!”


 

पैठाणी की होल्यार टीम – परंपरा का प्रहरी

पैठाणी की होल्यार टीम गढ़वाल की होली को संजोए रखने का काम कर रही है। यह टीम न केवल पारंपरिक होली गीतों को गाती है, बल्कि लोकसंस्कृति को जीवंत रखने के लिए नई पीढ़ी को जोड़ने का प्रयास भी करती है।

इस टोली की खास बात यह है कि यह हर साल गांव-गांव जाकर लोगों को होली के रंगों में सराबोर करती है। इनकी ढोल-दमाऊ और हुड़के की थाप सुनते ही लोग नाचने-गाने को मजबूर हो जाते हैं।

“गांव-गांव में गूंजै गीत,
होली में सब मिलन की रीत,
रंग लगोला हस हस भुला,
घुंघट में झांकै चंदा बुआ!”

इस टोली का एक मुख्य उद्देश्य प्रवासी गढ़वालियों को अपने गांव, अपनी संस्कृति से जोड़े रखना भी है।

“पलायन की बाता, बासि बणिगे,
माटी बुला छु, कां छन छोड़े,
बौरा लीं, घाम चूमा लीं,
अपणा जख माटू सुमर लीं!”


 

गढ़वाली होली गीत – संगीत में रंगों की मिठास

गढ़वाली होली का असली मजा इसके गीतों में बसता है। पैठाणी की होल्यार टीम द्वारा गाए जाने वाले गीतों में पारंपरिक धुनों के साथ नए रंग भी देखने को मिलते हैं।

इस गीत में गढ़वाल की होली की मस्ती, पहाड़ों की सुंदरता और प्रवासी गढ़वालियों की याद शामिल है।

 

“होली खेलण तू अब भी आइ,
घरों में उज्याली लौट आइ,
माँ के झोली मां रंग भराइ,
ब्वारी संग मस्ती जमाइ!”

यह गीत केवल रंगों का ही नहीं, बल्कि मिलन और प्रेम का संदेश भी देता है।

“फागुन की मस्ती, प्यार की बात,
सब मिल खेला आज होली रात,
भुला-भुली संग, खेली होली,
बनी रहै हमेशा अपनी टोली!”


 

निष्कर्ष – संस्कृति से जुड़े रहने का संकल्प

गढ़वाल की होली केवल रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि संस्कृति, भाईचारे और उल्लास का प्रतीक है। पैठाणी की होल्यार टीम इसे जीवंत बनाए रखने के लिए जो प्रयास कर रही है, वह सराहनीय है।

यह टीम नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने, पलायन रोकने और संस्कृति को सहेजने का बेहतरीन माध्यम बन रही है।

“जै हो देवभूमि, जै हो गीत,
संस्कृति अपनी अमर अतीत!”

अगर आप इस होली गढ़वाल की असली मस्ती का अनुभव करना चाहते हैं, तो पैठाणी की होल्यार टोली के साथ रंगों और संगीत के इस अद्भुत संगम में जरूर शामिल हों!

 

“जय होली! जय उत्तराखंड!”

 

 

– By Mohit Bangari

Also Read – Story of Jeetu Bagdwal – A Folk Legend of Uttarakhand

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