सुरकंडा देवी मंदिर- धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहर
Mohit Bangari
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उत्तराखंड की पवित्र भूमि देवभूमि के नाम से जानी जाती है। यहां के हर कोने में धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहरें छुपी हुई हैं। इन्हीं में से एक है सुरकंडा देवी मंदिर। यह मंदिर देवी सती को समर्पित है और 51 शक्तिपीठों में से एक है। टिहरी जिले में स्थित यह मंदिर अपने धार्मिक महत्व और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है। यह स्थान हिमालय की ऊंचाई पर बसा है, जो इसे और भी मनोहारी बनाता है। यहां से बर्फ से ढकी पर्वत श्रृंखलाएं, हरे-भरे जंगल और खुले आसमान का दृश्य दिखाई देता है।
सुरकंडा देवी का महत्व
सुरकंडा देवी मंदिर धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, जहां-जहां देवी सती के शरीर के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। सुरकंडा देवी वह स्थान है जहां देवी सती का सिर गिरा था। इसलिए यह स्थान “शक्तिपीठ” के रूप में विख्यात है।
माना जाता है कि यहां आने वाले भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। देवी का आशीर्वाद पाने के लिए भक्त दूर-दूर से आते हैं। यहां मां सुरकंडा की पूजा के साथ-साथ प्रकृति के अद्भुत दृश्य भी आत्मा को शांति प्रदान करते हैं।
मंदिर का स्थान
सुरकंडा देवी मंदिर उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में स्थित है। यह धनौल्टी और चंबा के बीच कद्दूखाल नामक स्थान के पास है। यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 2,757 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से गंगोत्री, यमुनोत्री, और बद्रीनाथ-केदारनाथ जैसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों की पहाड़ियां दिखाई देती हैं।
कैसे पहुंचे सुरकंडा देवी मंदिर?
मंदिर तक पहुंचने के लिए कई विकल्प उपलब्ध हैं। यह स्थान सड़क और पैदल यात्रा के जरिए आसानी से पहुंचा जा सकता है।
- सड़क मार्ग:
- दिल्ली, देहरादून, मसूरी, और ऋषिकेश जैसे प्रमुख शहरों से कद्दूखाल तक सीधी बस और टैक्सी सेवा उपलब्ध है।
- कद्दूखाल से मंदिर तक लगभग 2 किलोमीटर की चढ़ाई करनी पड़ती है।
- रेल मार्ग:
- देहरादून रेलवे स्टेशन यहां का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है। यह मंदिर से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर है। स्टेशन से टैक्सी या बस के जरिए कद्दूखाल पहुंच सकते हैं।
- हवाई मार्ग:
- जॉलीग्रांट एयरपोर्ट, देहरादून यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है। यह मंदिर से लगभग 90 किलोमीटर दूर है।
- पैदल मार्ग:
- कद्दूखाल से सुरकंडा देवी मंदिर तक एक सीधा और सुगम पैदल रास्ता है। यह रास्ता साफ-सुथरा और सुरक्षित है।
मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाएं
सुरकंडा देवी मंदिर का उल्लेख पौराणिक ग्रंथों और कथाओं में मिलता है। यह मंदिर देवी सती और भगवान शिव की पौराणिक कथा से जुड़ा है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया था। यज्ञ में सभी देवताओं और ऋषि-मुनियों को बुलाया गया, लेकिन भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। इस अपमान से क्रोधित होकर देवी सती अपने पिता के यज्ञ में गईं। वहां भगवान शिव का अपमान देखकर सती ने आत्मदाह कर लिया।
जब भगवान शिव को इसकी सूचना मिली, तो वे सती के शरीर को लेकर तांडव करने लगे। इससे पूरे ब्रह्मांड में हलचल मच गई। तब भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से काटकर 51 हिस्सों में विभाजित कर दिया। जहां-जहां सती के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठ बने। सुरकंडा देवी मंदिर वह स्थान है, जहां सती का सिर गिरा था।
मंदिर में मनाए जाने वाले त्योहार और उत्सव
सुरकंडा देवी मंदिर में वर्ष भर विभिन्न धार्मिक त्योहार और उत्सव मनाए जाते हैं।
- गंगा दशहरा:
- गंगा दशहरा के दिन यहां विशेष पूजा का आयोजन होता है। इस दिन मंदिर में मेला भी लगता है।
- स्थानीय लोग और पर्यटक बड़ी संख्या में भाग लेते हैं।
- नवरात्रि:
- नवरात्रि के दौरान मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ होती है। इन दिनों यहां विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
- पूर्णिमा पूजा:
- हर पूर्णिमा को यहां विशेष पूजा और भंडारे का आयोजन होता है।
प्राकृतिक सौंदर्य और आकर्षण
सुरकंडा देवी मंदिर के चारों ओर का प्राकृतिक दृश्य इसे खास बनाता है। मंदिर से बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियों का अद्भुत नज़ारा दिखाई देता है। यह स्थान ट्रेकिंग और प्रकृति प्रेमियों के लिए भी उपयुक्त है। मंदिर के आसपास घने देवदार और ओक के जंगल इसकी सुंदरता में चार चांद लगाते हैं।
यात्रा के लिए सुझाव
- चढ़ाई के लिए आरामदायक जूते पहनें।
- ठंड के मौसम में गर्म कपड़े साथ रखें।
- खाने-पीने का सामान और पानी की बोतल रखें।
- मंदिर में सुबह के समय दर्शन के लिए जाएं।
- स्थानीय संस्कृति और पर्यावरण का सम्मान करें।
निष्कर्ष
सुरकंडा देवी मंदिर धार्मिक आस्था और प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत संगम है। यहां आकर न केवल भक्त मां सुरकंडा का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, बल्कि हिमालय की खूबसूरती का भी अनुभव करते हैं। यह स्थान धार्मिक यात्रा के साथ-साथ आत्मिक शांति और प्रकृति के करीब जाने के लिए आदर्श है। यदि आप उत्तराखंड की यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो सुरकंडा देवी मंदिर को अपनी सूची में जरूर शामिल करें।
–मोहित बंगारी
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